चलो इक बार फिर से..
सो लेने दो मुझे
मेरे सपनों की खातिर
एक भरपूर नींद
डूबने दो उन साथ वाले
एहसासों के साथ......
क्यों तोड़ देते हो
सपने मेरे ,
ये कहकर कि
साहिर ने कहा था
चलो इक बार फिर से
अजनबी बन जाए
हम दोनों ........
कभी हंसते हुए
कभी खामोशी से
कभी तल्ख ज़ुबां से
क्यों तोड़ते देते हो
सपने मेरे.......
सो लेने दो मुझे
सपनों की खातिर
एक भरपूर नींद
मेरी मदहोशी अच्छी है
तुम्हारे लिए
समझो भी ज़रा.......
नींद से टूटकर
जाग गई तो
खुद को सपनों से
दूर कर लूंगी
सारी शक्ति
एकत्रित कर लूंगी.....
उस बात के लिए
जो तुमने कही थी
साहिर के बहाने.........
क्योंकि सपनों का टूटना
बेहतर है
नींद के टूटने से...........
@ रचनाकार- वर्षा रावल
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