भूपेन्द्र गुप्ता
भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रतिनिधि श्लोक "वसुधैव कुटुम्बकम" को हमेशा आदर के साथ दोहराया जाता रहा है। भारतीय संस्कृति और धर्म दर्शन की इससे अच्छी अभिव्यक्ति संभव नहीं है।
अयं निजः परो वैति गणना लघुचेतसाम्
उदारचरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
इसका अर्थ है– यह अपना है यह पराया है ऐसा आकलन छोटे दिल वालों का होता है। उदार चरित्र वालों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही उनका कुटुम्ब होती है।
भाजपा के लगभग सभी नेता यह श्लोक दोहराते रहे हैं और भारतीय संस्कृति का गुणगान करते रहे हैं लेकिन नागरिक संशोधन कानून लागू होने से अब क्या भाजपा नेता और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने को उदार चरित्र साबित कर पाएंगे? भाजपा ने यह साबित कर दिया कि उसको सनातन धर्म के सिद्धांतों और उदात्त विचारों से कोई लेना देना नहीं है। वह शुद्ध रूप से एक फासीवादी राजनीतिक पार्टी है जो धर्म , अध्यात्म और संस्कृति को नहीं मानती । नागरिक संशोधन कानून से भाजपा का वैचारिक धरातल खत्म हो गया है। अब वह शुद्ध रूप से हिंदूवादी पार्टी भी नहीं रही। भाजपा ने वसुधैव कुटुंबकम् के दर्शन को पोटली में बांधकर ताक पर रख दिया है। संविधान को तो भाजपा हमेशा से ही नकारती आ रही है। भाजपा का रिमोट कंट्रोल आर एस एस के हाथ में है। यह देश का हर नागरिक जानता है।
आज भारतीय संस्कृति के वसुधैव कुटुंबकम् के दर्शन की दुहाई देने वाली आर एस एस और भाजपा कहां है? अब यह जाहिर हो गया है कि भाजपा ने जो भ्रम फैला रखा था कि वह हिंदू दर्शन का एकमात्र ध्वजवाहक राजनीतिक दल है । नागरिक संशोधन कानून से रहा सहा भ्रम भी टूट गया है। महाराष्ट्र के प्रकरण से यह भी साबित हो गया कि भाजपा सत्ता प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है । उसका न तो सनातन धर्म से कोई लेना-देना है और न ही भारतीय संस्कृति से। भाजपा ने अपने आचरण की अशुद्धियों को बड़ी चतुराई से छुपा कर रखा था। आम जन मानता है कि झूठ कैसे फैलाया जाए इसका प्रशिक्षण भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को देती आ रही है? नागरिक संशोधन कानून से अब भाजपा का असली रंग जाहिर हो गया है। आज जब देश में इस कानून का विरोध हो रहा है तो भाजपा का कोई नेता "वसुधैव कुटुंबकम्" का श्लोक नहीं पढ़ रहा है।
नागरिक संशोधन कानून से भाजपा की एक और पोल सामने आई है उनसे स्वामी विवेकानंद के आदर्श को भी नकार दिया है। स्वामी विवेकानंद के शब्दों को भाजपा ने बुरी तरह से निरादर किया है। भाजपा झूठ कैसे गढ़ती है और उसे सच कैसे साबित करती है इसकी भी मिसाल भाजपा ने पेश की है। इस संदर्भ में स्वामी विवेकानंद के शिकागो में दिया इस धर्म संसद में दिए गए भाषण के कुछ अंशों को दोहराना उचित होगा। इस भाषण को स्वामी विवेकानंद के जन्म दिन 12 जनवरी को भाजपा के नेता याद करते है।स्वामी विवेकानंद को ढाल बनाकर भाजपा ने प्रस्तुत किया । आज जब स्वामी विवेकानंद के स्वर्णिम शब्दों को दोहराने की आवश्यकता है तब भाजपा नेता नेताओं ने स्वामी विवेकानंद से भी किनारा कर लिया। स्वामी जी का यह भाषण ऐसे भारत देश का प्रतिनिधित्व करने वाला भाषण था जिसमे हिन्दू मुसलमान, ईसाई, फ़ारसी साथ मिलकर रहते हैं। अब भाजपा और आर एस एस में हिम्मत हो तो कहें कि विवेकानंद ने असत्य कहा था।
स्वामीजी ने कहा था कि "मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह ज़ाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है।"
उन्होंने कहा था कि " मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं।"
अब अमित शाह कहें कि स्वामी विवेकानंद की इन बातों से हमें कोई लेना देना नहीं है। स्वामी जी ने उस भाषण में यह भी कहा था कि " मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी।मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।
अब हमेशा यह भी बताएं कि उन शरणार्थियों की संतानों को भारतीय मानेंगे या उन्हें ढूंढ ढूंढ कर वापस इसराइल भेज देंगे। स्वामी विवेकानंद की बात को झूठ साबित कर अब भी बेबुनियाद बातें करेंगे।
स्वामी जी ने अपने भाषण में भी कहा था
"मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है।"
"मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं ''जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते है।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जब स्वामी जी का भाषण हुआ तब भारत एक था। हिन्दू मुस्लिम ईसाई, पारसी मिलकर रहते थे।
आज पूरी भाजपा अचानक धर्म विशेष के प्रति नफरत से कैसे भर गई। देश के तमाम बड़े मुद्दों को छोड़कर उसे नागरिक संशोधन कानून क्यों बनाना पड़ा ? क्या बिना कानून बनाएं यह मुद्दा हल नहीं हो सकता था? क्या इस मुद्दे के लिए देश को तोड़ने का जोखिम उठाना जरूरी है।
शास्त्रीय संगीत के महान सम्राट बाबा अलाउद्दीन खान ढाका से आए थे और मैहर में मां शारदा के चरणों में अपनी संगीत साधना की। वे अपने जीवन काल में ही विश्व नागरिक बन गए थे। भारत का इतिहास भरा पड़ा है उन महान लोगों की गाथाओं से जो भारत के नहीं थे लेकिन उन्होंने पूरे मन से भारत की सेवा की ।
अब भाजपा और अमित शाह कहेंगे कि जिम कार्बेट नेशनल पार्क का नाम बदलो। एनी बेसेंट की प्रतिमा हटाओ । मदर टेरेसा का नाम काटो। भारत में पिछले 40 सालों से गौ सेवा कर रहीं जर्मन महिला फ्रेडरिक ब्रुइनिंग को 70 वें गणतंत्र दिवस पर पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया।
भाजपा नागरिक संशोधन कानून का हवाला देकर कहेगी कि अब जर्मन वापस जाइए।
भाजपा और अमित शाह अब कहेंगे कि फादर कामिल बुल्के के हिंदी शब्दकोश को उठाकर फेंक दो ।
क्या आरएसएस अब कहेगी कि मैक्स मूलर द्वारा वेदों के अंग्रेजी अनुवाद को पढ़ना बंद करो क्योंकि वह जर्मन से आया था। क्या खजुराहो को देखना बंद करने की बात होगी क्योंकि उसे लार्ड कनिंघम ने प्रकाश में लाया था? या गीता का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ना बंद करने की वकालत होगी जिसे सर एडविन अर्नाल्ड ने अंगेजी में अनुवाद किया था? क्या भाजपा और आरएसएस यह कहेगी कि सर विलियम जोन्स का नाम इतिहास से हटाओ जिन्होंने संस्कृत का गुणगान किया और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग की स्थापना कराने में योगदान दिया था।
क्या भाजपा अब कहेगी कि महर्षिअरविंदो आश्रम में मत जाइए क्योंकि ममतामई मां मीरा अलफसा इससे जुड़ी थीं।
भगिनी निवेदिता ने न केवल भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों की खुलेआम मदद की बल्कि महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। भगिनी निवेदिता का भारत से परिचय स्वामी विवेकानन्द के जरिए हुआ। क्या उन्हें नकार देंगे।
भाजपा ने नागरिक संशोधन कानून लेकर पूरे विश्व में भारत का मान सम्मान घटाया है । अपने संकुचित दृष्टिकोण और सोच के कारण न तो प्रधानमंत्री, अमित शाह और भाजपा उदार चरित्र दिखा पाये और न ही वे भारत की महान परंपराओं को समझ पाए । नागरिक संशोधन जैसे कानून लाकर भारत के कर्ताधर्ता होने का दंभ और झूठा नाटक रच कर अब भी भ्रम फैला रहे हैं, कि हम विश्व गुरु बनेंगे। भारत के साथ,भारत की क्षमताओं बुद्धिमत्ता, ज्ञान और विवेक के साथ बहुत बड़ा मजाक कर रहे हैं। भाजपा ने नागरिक संशोधन कानून लाकर भारत की अस्मिता पर, इसकी नींव पर प्रहार किया है । प्रजातंत्र में भले ही भाजपा संख्या बल में आगे हो ,लेकिन भारत के गौरवशाली इतिहास में भाजपा का यह कदम माफी योग्य नहीं है।
(लेखक मप्र कांग्रेस के विचार विभाग के अध्यक्ष हैं)
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