- जंगल बचाने जापान की मियावकी तकनीक अपनाने पर जोर
भोपाल। हमारे नदी नाले जो हमारे शहरों से निकलते हैं, वो छोटी नदियों में मिलते हैं और ये नदियां बड़ी नदियों में मिलते हैं। यही क्रम है नर्मदा के प्रदूषित होने का। ये बातें शुक्रवार को राज्य संग्रहालय सभागार में संस्था ग्रीन अर्थ द्वारा आयोजित कार्यक्रम "नर्मदे हर" में नर्मदा समग्र न्यास के सीईओ कार्तिक सप्रे ने कहीं। इस अवसर पर उन्होंने नदियों को जीवित इकाई मान गंदा पानी सीधे नदी में छोडने के खिलाफ एक अभियान चलाने का सुझाव दिया। रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी डॉ. एसपी तिवारी ने बताया कि आज के समय में लगातार तापमान बढ़ रहा है और ये तापमान पेड़ों के कटने के कारण बढ़ रहा है। यदि आंकड़ों की बात करें तो भोपाल का तापमान 45 से 35 डिग्री सेल्सियस लाने के लिए हमें शहर में 5 करोड़ पेड़ लगाने होंगे। तभी शहर का तापमान भी कम होगा और नदियों के सूखने का क्रम भी रुकेगा। उन्होंने बताया कि जंगल नदी की मां है। इसीलिए नर्मदा किनारे के 18 जिलों में जबतक हम जंगल विकसित नहीं करेंगे तब तक सब अंधेरे में ही रहेगा। वहीं जन अभियान परिषद के टास्क मैनेजर सैय्यद शाकिर अली जाफरी ने बताया कि बरगद के पेड़ में 10 लाख लीटर पानी संग्रहण की क्षमता है। वहीं नीम के पेड़ में 5 से 6 लाख लीटर पानी संग्रहण की क्षमता होती है। साथ पीपल के पेड़ में 8.5 लाख लीटर पानी संग्रहण की क्षमता होती है। इन्हीं पेड़ों की त्रिवेणी से नदी को बचाया जा सकता है।
जैविक खेती का हो उपयोग :
समाजसेवी आनन्द पटेल ने बताया कि नर्मदा किनारे किसान जैविक खेती की ओर अग्रसर हों। इससे नदी का प्रदूषण काफी हद तक रोक सकते हैं। वहीं नदी में सिक्के, प्रसाद, हवन सामग्री न डालने की बात पर जोर दिया। वहीं समाजसेवी डॉ. रचना डेविड ने जंगलों के विकास के लिए जापानी मियावाकी तकनीक का उपयोग किया जाए। इस तकनीक के जरिये नर्मदा किनारे 3 साल में ही घना जंगल विकसित किया जा सकता है। जंगल विकसित होने से जमीन की उर्वरता बढ़ेगी और इससे किसानों को फायदा होगा।
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