मास्क का महत्व एवं मनोविज्ञान बताया सारिका घारू ने
भोपाल। लॉकडाउन के खुलते या ढ़ील मिलते ही मास्क या फेस कव्हर सभी का एक मात्र सुरक्षा कवच होगा। शरीर पर धारण किये जाने वाले वस्त्रों की तरह मास्क वस्त्र वर्तमान समय की आवष्यक्ता बन गई है। मानव मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुये मास्क का स्वैच्छिक प्रचलन बढ़ाने के लिये ,इनका स्वरूप आकर्षक किये जाने की आवश्यक्ता है। यह बात नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने एक टेलिफ ोनिक सर्वेक्षण के आधार पर बताई। सारिका ने बताया कि मास्क का स्वरूप रूचिकर करके अवचेतन में समाये रोग के भय का भाव कम किया जा सकता है। इसके लिये डब्लू एच ओ के सुरक्षा मानकों का परिपालन करते हुये बच्चों के लिये उनके कार्टून कैरेक्टर वाले मास्क, लड़कियों के लिये उनकी रूचि को देखते हुये तथा प्रौढ़ों के लिये उनके मनोविज्ञान को समझते हुये मास्क डिजाईन किये जा सकते है। स्कूल युूनिफार्म का हिस्सा भी इसे बनाया जाना चाहिये। इनको बनाने पर अधिक खर्च न हो यह देखना जरूरी होगा। सारिका ने बताया कि यह देखा गया है कि मास्क को लगाकर बोलने में कठिनाई महसूस होती है इसके लिये मास्क का मुंह के सामने वाले भाग कीं डिजाईन में परिवर्तन भी किये जाने की आवश्यक्ता महसूस होती है।
सारिका ने बताया कि भारतीय ग्रामीण परंपरा का गमछा एवं लड़कियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाला स्टाल की तीन परत से चेहरे को कव्हर करना तो सबसे अच्छा होगा। इनके उपयोग से पूर्व से ही सभी अभ्यस्त है। 6 से 8 घंटे के हर उपयोग के बाद इन्हें सेनिटाइज किया जाना जरूरी होगा। इसी प्रकार मास्क या फेस कव्हर हैंगर को घर के बाहर ही लगाने के लिये भी नई व्यवस्था बनाना आवष्यक होगा। जिसमें घर के सभी सदस्य बाहर से आकर सबसे पहले मास्क को बाहर ही उतार कर टांग दें। तो तैयारी शुरू कर दीजिये मास्क के साथ अपनी पहचान बनाने की जब तक कि साइंस इस का उपचार न ढूंढ ले।
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