माँ
क्या हुआ....
जो माँ के साथ,
एक भी तस्वीर नही....
पर हाँ!
यादें बहुत हैं.....
कहोगे तो,
यादों की पोटली से...
कुछ जीवित,
तस्वीर निकाल लाऊंगी...
कभी चोटी बनाती...
कभी रोटी बनाती....
कभी डांटती हुई...
मुझे पकड़ती.....
बहुत स्मृतियां है,
जो रह-रहकर,
द्रविड़ कर रही....
क्या फर्क पड़ता हैं....
तस्वीर हो ना हो....
माँ तो है ना!!!!
प्ररतिभा श्रीवास्तव "अंश"
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