सात हजार की जगह 2947 छात्रों को बनाया आरोपी
10 साल में महज 180 आरोपियों को खिलाफ पेश हुआ है चालान
संदीप सिंह गहरवार
भोपाल । लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल द्वारा साल 2013 में आयोजित कराई गई टायपिंग परीक्षा में हुये घोटाले को दस साल बीतने को आ रहे है, इसो बावजूद अभी तक जांच एजेंसी एसटीएफ महज 180 आरोपियों को चालान पेश कर पाई है, जिनमें से 165 छात्र तथा 15 डीपीआई के अधिकारी शामिल है। मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि टायपिंग परीक्षा में फर्जीवाड़ा उजागर होने पर 7 हजार छात्रों को आरोपी बनाने की जगह महज 2947 छात्रों एवं डीपीआई के अफसरों पर मामला दर्ज किया गया था। मजेदार बात यह है कि लोक शिक्षण संचालनालय का यह टायपिंग घोटाला खुलासे के 10 साल बाद भी जांच एजेंसी एसटीएफ के लिए कमाऊपूत बना है। जानकार सूत्र बताते है कि इस टायपिंग परीक्षा को पास कर चुके छात्र जो इस प्रमाण पत्र से परे अपनी अन्य योग्यता की वजह से भी शासकीय सेवा में है उन्हें धमकाकर एसटीएफ के अधिकारी मनमानी रकम वसूलते रहते है। एसटीएफ के लिए दुधारू गाय बन चुके टायपिंग घोटाले के आरोपी छात्र अपने किये पर भले पछता रहे हो पर एसटीएफ के चेहरों पर इस लेट लतीफी की कोई शिकन नहीं है। उनके लिए यह कमाई का एक जरिया बन गया है। यह बात इससे भी साबित हो जाती है कि 3 हजार आरोपियों के इस बड़े घोटाले की जांच एसटीएफ में एसएएफ से प्रतिनियुक्ति पर आये डीएसपी स्तर के अधिकारी अधिकारी और महज एक सिपाही के हवाले है। इस मामले में एक मजेदार बात और यह है कि घोटाले की जांच कर रहे डीएसपी के अधिकारी तो बदलते रहे हैं, पर जांच में शामिल सिपाही पिछले दस सालों से छात्रों की छाती पर मूंग दल रहा है। गौरतलब है कि एक शिकायक के आधार पर एसटीएफ द्वारा 11 अक्टूबर को टायपिंग घोटाले में अपराध क्रमांक 09/13 कायम करते हुए एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें 57 छात्रों के रोल नंबर शामिल थे। शिकायत पर जांच करते हुए एसटीएफ ने सबसे पहले डीपीआई अधिकारियों पर कार्रवाई करते हुए उन्हें गिरफतार किया, जो फिलहाल जमानत पर है। अक्टूबर 2013 में मामला दर्ज करने के बाद पड़ताल के दौरान एसटीएफ ने छात्रों को पूछताछ के लिए 2015 में बुलाया था, जिसके बाद वर्ष 2017 में डीपीआई ने एसटीएफ की जांच रिपोर्ट के आधार पर 2947 छात्रों का परीक्षा परिणाम निरस्त कर दिया था ।
टायपिंग संचालकों पर मेहरबानी, छात्रों को बनाया निशाना
2013 में हुये इस टायपिंग घोटाले में आश्चर्यजनक पहलू यह है कि एसटीएफ के द्वारा 2947 छात्रों के साथ डी.पी.आई. के अधिकार व कर्मचारी प्रत्येक परीक्षा सेंटर के केन्द्राध्यक्ष एवं टायपिंग संचालको को भी संदिग्ध आरोपी बनाया था इसके बावजूद विगत 10 वर्षों के दौरान कमाई के चक्कर में एस.टी.एफ. के अफसरों का मुख्य टारगेट छात्र ही बने हुये है । यह बात समझ से परे है कि इस घोटालें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले टायपिंग सेंटर संचालको को आरोपी बनाये जाने के बाद भी एस.टी.एफ. के अफसरों की मेहरबानी क्यों कायम है । जानकार सूत्र बताते है कि एसटीएफ द्वारा इन्हें महज औपचारिकता निभाते हुये पूछताछ कर छोड़ दिया था जबकि मामले में इनकी संलिप्तता थी । एक तरफ प्रदेश में बेरोजगारी चरम पर है, वहीं दूसरी ओर एसटीएफ के द्वारा अपनी योग्यरता के आधार पर नौकरी पाने वाले और बेरोजगार छात्रों को प्रताडि़त किया जा रहा है ।
सिर्फ नौकरी वाले छात्रों के पीछे पड़ी एसटीएफ
एसटीएफ के लिए कमाउ पूत बने इस घोटाले में आश्चार्यजनक बात यह है कि साल 2013 में कायम की गई एफआईआर में 57 छात्रों को आरोपी बनाया गया था किन्तु 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक इन रोल नंबर के छात्रों को नहीं पकड़ा गया । उसके विपरीत इस परीक्षा की जगह अन्य शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी पाने वाले छात्रों को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है ताकि एसटीएफ के अफसरो का व्यक्तिगत खजाना भरा जा सके । सिर्फ इतना ही नही जो छात्र स्वयं की योग्यता के आधार पर नौकरी पाये है उन छात्रों के कार्यालय प्रमुख से बिना अनुमति के गिरफ्तारी कर बिना जानकारी के ही चालान पेश कर दिया जाता है ।
मनमर्जी कर पेश कर रहे चालान
लोक शिक्षण संचालनालय के इस टायपिंग घोटाले में अदालत में चालान पेश करने के मामले में भी जांच एजेंसी एस.टी.एफ. की मनमर्जी सामने आई है। सूत्र बताते है कि इस मामले में साल 2017, 22018, 2019 एवं 2020 में अग्रिम जमानत कराने वाले आरोपियों का चालान पेश करने बजाये एसटीएफ ने 2021 में अग्रिम जमानत कराने वाले आरोपियों का चालान पेश कर दिया । एसटीएफ के अफसरों की यह कारस्तानी किसी स्वतंत्र एजेंसी के लिए जांच का विषय भी बन सकती है क्योंकि नियमानुसार एसटीएफ को तय समय में साल 2017 से 2020 तक अग्रिम जमानत पर रिहा आरोपियों का चालान पेश करना चाहिये था । इतना ही नहीं बीते 15 महीनों में करीब 50 आरोपियों ने अग्रिम जमानत कराई है किन्तु एसटीएफ ने इन सभी के चालान पेश नहीं किये है ।
मनमानी पर उतारू जांच एजेंसी
क्रमबद्ध और सही जांच करने के बजाए जांच एसटीएफ अपनी मनमानी पर उतारू
है । एसटीएफ ने उक्त मामले में सभी छात्रों से साल 2015 में पूछताछ करने के बाद
साल 2017 में 2947 छात्रों को आरोपी बनाते हुए गिरफ्तारी प्रारंभ कर दी थी । इसके
बाद भी सात साल बाद अचानक मई 2022 में करीब दो दर्जन आरोपियों के
कार्यालय प्रमुख को पत्र प्रेषित कर कर्मचारियों
का बयान दर्ज कराने के लिए एसटीएफ कार्यालय
बुलाया । हालांकि एसटीएफ के इस पत्र के बाद अधिकतर आरोपी छात्रों ने अदालत से
अग्रिम जमानत कराने के बाद ही एसटीएफ कार्यालय में अपना बयान दर्ज कराया, जो कई तरह के संदेहों को जन्म देता है ।
एस.टी.एफ. की जांच को उच्च न्यायालय ने था नकारा
डी.पी.आई. के इस टायपिंग घोटाले का सबसे महत्वसपूर्ण पहलू यह है कि शिकातय के आधार पर जांच एजेंसी एस.टी.एफ. के द्वारा दर्ज किये गये इस मामले की जांच रिपोर्ट के आधार पर लोक शिक्षण संचालनालय ने जिस टायपिंग परीक्षा को निरसत कर दिया था उस निर्णय को मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय ने निरसत कर दिया था । दरअसल लोक शिक्षण संचालनालय के निर्णय के बाद विभिन्न विभागों में टायपिंग प्रमाण पत्र के आधार पर कार्यरत कर्मचारियों को उनके कार्यालयों द्वारा पदच्युत करने की कार्यवाही की गई थी । इस निर्णय के विरूद्ध ऐसे कर्मचारियों ने न्यायालय की शरण ली थी । उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में डीपीआई द्वारा रद्द किये गये परीक्षा परिणाम को यह कहकर निरस्त कर दिया था कि विभागीय स्तर पर बिना जांच किये परीक्षा परिणाम निरस्त करना न्यायसंगत नहीं है । आश्चर्य इस बात का है कि उच्च न्यायालय के निर्देश बाद भी दस साल बाद आज भी एसटीएफ द्वारा सभी 2947 छात्रों को आरोपी बनाकर आपराधिक प्रकरण चलाने की धमकी देकर रूपयों की वसूली की जा रही है । साथ ही शासन के द्वारा भी इस टायपिंग प्रमाण को समाप्त कर सरकारी नौकरी में मैप आई टी के द्वारा आयोजित सीपीसीटी के प्रमाण पत्र को मान्य कर दिया है ।
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