रिक्त उदर में जले अँगीठी
आँत करे उत्पात
हर कातर स्वर करे अनसुना
विकट पूस की रात
कौन्तेय को लघुतर करने
खींचें खड़ी लकीर
दानवीर कंबल वितरित कर
खिंचवाएँ तस्वीर
आँगन में है कुहरा ,घर में
औंधी पड़ी परात
प्यास न अधरों की बुझ पायी,
भरा नयन में नीर
खरपतवार उगे हैं जब भी
रोपी आस उशीर
नीति पिण्ड भी नित नव रह -रह,
करते उल्कापात
आश्वासन ही आश्वासन पर
देख रहा गणतंत्र
हाकिम फूँकें लाल किले से
विफल हुए वे मंत्र
वादों की नंगी तकली पर
सूत रहे हैं कात ।
-अनामिका सिंह
हर कातर स्वर करे अनसुना
विकट पूस की रात
कौन्तेय को लघुतर करने
खींचें खड़ी लकीर
दानवीर कंबल वितरित कर
खिंचवाएँ तस्वीर
आँगन में है कुहरा ,घर में
औंधी पड़ी परात
प्यास न अधरों की बुझ पायी,
भरा नयन में नीर
खरपतवार उगे हैं जब भी
रोपी आस उशीर
नीति पिण्ड भी नित नव रह -रह,
करते उल्कापात
आश्वासन ही आश्वासन पर
देख रहा गणतंत्र
हाकिम फूँकें लाल किले से
विफल हुए वे मंत्र
वादों की नंगी तकली पर
सूत रहे हैं कात ।
-अनामिका सिंह
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