महिला दिवस केवल उत्सव का दिन नहीं, बल्कि आत्ममंथन और संकल्प का अवसर है। हम जब भी महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा की बात करते हैं, तो इसका समाधान केवल कानून और नीतियों तक सीमित नहीं होना चाहिए। असली बदलाव तब आएगा जब हम इसकी शुरुआत अपने घर से करेंगे।
बेटियों को सशक्त बनाने के साथ-साथ बेटों को संस्कार देना भी उतना ही आवश्यक है। हमें अपने घर के लड़कों को यह सिखाना होगा कि हर महिला, चाहे वह उनकी माँ, बहन, सहपाठी, सहकर्मी या अजनबी ही क्यों न हो, सम्मान और समानता की हक़दार है। वे न केवल खुद किसी महिला का अपमान न करें, बल्कि किसी और को भी ऐसा करने से रोकें। यही सही अर्थों में महिला सशक्तिकरण होगा।
अगर हर परिवार यह जिम्मेदारी ले कि उनके बेटे महिलाओं को सम्मान देना सीखें, तो समाज में अपराध और भेदभाव की जड़ें खुद-ब-खुद खत्म होने लगेंगी। इसलिए इस महिला दिवस पर संकल्प लें, बेटियों को ताकत और बेटों को संस्कार देंगे, ताकि वे न केवल महिलाओं का सम्मान करें बल्कि हर किसी को ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। जब बेटों के विचार बदलेंगे, तभी समाज की सोच बदलेगी, और तब सही मायनों में महिला सशक्तिकरण संभव होगा।
रेनू शब्दमुखर
हिंदी विभागाध्यक्ष ज्ञान विहार स्कूल
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